हम जब सफ़र पे निकले थे तारों की छाँव थी
फिर अपने हम-रक़ाब उजाला सहर का था
— अज्ञात
ज़िन्दगी एक किताब की तरह है, हर दिन एक नया पन्ना
— गुलज़ार
वो लम्हा भी क्या खूब था जब सब खामोश थे मगर दिल बोल रहा था
— जावेद अख़्तर
हर एक मुसाफिर कुछ नया सिखाता है रास्तों में
— अमृता प्रीतम
हम जब सफ़र पे निकले थे तारों की छाँव थी
फिर अपने हम-रक़ाब उजाला सहर का था
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